देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने की दिशा में बहुप्रतीक्षित मोरवा पुनर्स्थापन की प्रक्रिया कुछ माह पहले शुरू हो चुकी है, जो कि इस प्रक्रिया की शुरूआत है। यानी इस पुनर्स्थापन की प्रक्रिया से जुड़े कई बड़े कदम आने वाले दो-तीन सालों में उठाये जायेंगे। यह जानकारी सोमवार को एनसीएल मुख्यालय में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में सीएमडी बी. साईराम ने दी है।
नवागत सीएमडी पहली बार मीडिया कर्मियों से मुखातिब हुये। उन्होंने मोरवा विस्थापन से जुड़े एक सवाल के जवाब में कहाकि यह एक बड़ा कार्य है। इसे मैं विस्थापन नहीं अपितु पुनस्र्थापना कहूंगा। जिसमें बहुत सारी एक्टीविटीज शामिल हैं जैसे कि फिजिकल डिमार्केशन ऑफ बाउंड्री, फिजिकल सर्वे एआर-आर साइट का निर्धारण, पीएपीएस फाइनलाइजेशन, आर आर साईट का विकास, कंपनसेशन का अनुमोदन एवं वितरण, एनसीएल मुख्यालय की शिफ्टिंग आदि। अभी तो इन 7-8 बड़े कदम उठाने की तैयारी चल रही हैं। मोरवा पुनर्स्थापन के संदर्भ में हम सभी के सहयोग से कार्य कर रहे हैं। अभी कई विकल्पों पर विचार चल रहा है। मोरवावासियों के सहयोग से निर्धारित समयावधि में हम विस्थापन करने के लिए प्रयासरत हैं। आगामी तीन साल में मोरवा और एनसीएल मुख्यालय की पुनर्स्थापना कर पाने की हमें उम्मीद है।
1-2 साल में शुरू होगी दो भूमिगत खदानें
एनसीएल की ककरी, झिंगुरदह जैसी छोटी खदानें बंद हो जाएंगी। इससे इन खदानों से आसपास के प्लांटों में होने वाली करीब 7-8 मिलियन टन कोयले की आपूर्ति कैसे की जाएगी? इस सवाल के जवाब में सीएमडी एनसीएल ने कहाकि हमारे पास परिक्षेत्र में कोयला उत्पादन के कई ऑप्शन हैं। इसमें दो भूमिगत खदानों पर तिनगुड़ी व मरकी-बरका पर वर्किंग चल रही है और सीएमपीडीआई इस पर प्लान तैयार कर रहा है। इन खदानों से ही आपूर्ति के गैप को कवर करने की योजना है। इसके अलावा अगले कुछ सालों में जयंत की क्षमता 38 मिलियन टन तक हो जाएगी। बीना-ककरी को जोड़कर नई परियोजना बनायेंगे और निगाही व ब्लॉक-बी चलती रहेंगी।
कोल ही नहीं बिजली उत्पादन भी कनेक्ट
मोरवा पुनर्स्थापन पर बोलते हुये सीएमडी श्री साईराम ने कहाकि मोरवा पुनर्स्थापन की प्रक्रिया में देरी न होने पाए, इस पर विशेष जोर दिया जा रहा है। क्योंकि इस विस्थापन से सिर्फ जयंत, दुधिचुआ की खदानों का विस्तार ही नहीं जुड़ा है बल्कि इससे बिजली उत्पादन भी जुड़ा है। उन्होंने कहाकि जयंत माइंस के पास लगभग डेढ़-दो साल की ही लाइफ शेष है। ऐसे में अगर जयंत से कोयला उत्पादन बंद होता है तो एनटीपीसी के मदर प्लांट एनटीपीसी सिंगरौली में कोयले की आपूर्ति बंद हो जाएगी। कोयला नहीं मिलेगा तो बिजली उत्पादन भी बंद हो जाएगा। अन्य कोई खदान जयंत जितना कोयला एनटीपीसी सिंगरौली को नहीं दे सकता। इसलिए मोरवा पुनर्स्थापन की तमाम प्रक्रिया को पूर्ण कर क्षेत्र कोयला उत्पादन के लिए उपलब्ध हो सके, इस पर मुख्य फोकस है।
सोलर प्लांट लगाने की है प्लानिंग
सीएमडी श्री साईराम ने कहाकि नेट जीरो एनर्जी कंपनी बनने की दिशा में एनसीएल ने निगाही क्षेत्र में 50 मेगावाट के सोलर प्लांट स्थापित किया और 250 मेगावाट अतिरिक्त सौर ऊर्जा क्षमता के विकास पर भी एनसीएल तेजी से कार्य कर रहा है। एनसीएल में सौर ऊर्जा क्षमता के विकास के लिए एक विशेष सेल का गठन कर जीएम स्तर के अधिकारी को जिम्मेदारी सौंपी है। हम अपने दायरे के स्थलों के अलावा सिंगरौली-सोनभद्र व आसपास के जिलों में भी जगह की तलाश कर रहे हैं, जहां हम सोलर प्लांट स्थापित कर सकें।
ये रहे उपस्थित
इस दौरान सीएमडी एनसीएल श्री साईराम के साथ निदेशक कार्मिक मनीष कुमार, निदेशक वित्त रजनीश नारायण, निदेशक तकनीकी / संचालन जितेंद्र मलिक, निदेशक तकनीकी / परियोजना एवं योजना सुनील प्रसाद सिंह भी इस अवसर पर एम-सेंड का उपयोग एनसीएल के संविदाकारों के लिए अनिवार्य करने की योजना। जिला प्रशासन के निर्देश के तहत ही ओबी कंपनियों में भर्ती प्रक्रिया चल रही। ब्लॉस्टिंग समस्या को कम करने जयंत, दुधिचुआ, निगाही के ब्लॉस्टिंग समय में परिवर्तन।
प्रेस वार्ता में ये मुद्दे भी उठे
- मैनपावर की कमी दूर करने स्पेशल रिक्रूटमेंट ड्राइव चला रहे, सीआईएल से मांगा अप्रूवल ।
- नेट जीरो बनने व पर्यावरण की बेहतरी के लिए मजबूत कदम उठा रहा एनसीएल।
- बीते वित्त वर्ष में 135 मिलियन टन लक्ष्य था, 136.15 मिलियन टन किया कोयला उत्पादन एवं 137.63 मिलियन टन किया प्रेषण।
- बिजली घरों को एनसीएल ने भारी मात्रा में 122.21 मिलियन टन कोयला प्रेषित किया।
- वित्त वर्ष 2024-25 के लिए 139 मिलियन टन कोयला उत्पादन व प्रेषण का लक्ष्य
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