कारगिल विजय दिवस : यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि अपने सिंगरौली जिले में कारगिल विजय के नायकों में एक कर्नल गौरव चतुर्वेदी भी रहते हैं। इन्होंने सेना की अन्य यूनिट तथा अपनी सातवीं बटालियन पैराशूट रेजिमेंट स्पेशल फोर्सेज के वीर जवानों के साथ अदम्य वीरता व साहस का प्रदर्शन करते हुए तोतोलिंग टॉप को फतह किया था। कारगिल विजय की 25वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर गुरुवार को उन्होंने युद्ध की दास्तां सुनाई। तोतोलिंग टॉप पर मोर्चा लेने वाले सिख सैनिक गोपाल सिंह की जीवटता, वीरता और दृढ़संकल्प को भी याद किया। बोले, इस युद्ध में कई साथियों ने शहादत का वरण किया, मगर गोपाल सिंह का साहस और कारगिल विजय अनमोल है। जो हमें कर्मठता व कर्तव्यपरायणता के लिए प्रेरित करती है। इनके पूर्वज वैसे तो आगरा के थे, मगर कर्नल गौरव चतुर्वेदी और उनके माता-पिता भोपाल में बसे। जुलाई 2016 में सेवानिवृत्ति के बाद सात- आठ वर्ष मुंबई में रहे तो 6 माह पूर्व हिंडालको महान बरगवां में हेड ऑफ प्लांट सिक्योरिटी एंड एडमिनिस्ट्रेशन पदस्थ हुए। जानते हैं कारगिल विजय की कहानी उनकी जुबानी।
दो जून की रात आगरा से लेह के लिए अचानक हुई रवानगी
दो जून, दोपहर को ऑर्डर मिला, रात में बाइ एयर निकले व 3 को लेह पहुंचे। पिक्चर क्लीयर नहीं थी। वहां से बटालिक मूव मूव किया, रास्ते में द्रास जाने कहा गया। द्रास पहुंचे तो तोतोलिंग पर अटैक हो रहा था। मस्को वैली में तोतोलिंग के पीछे दुश्मन का रास्ता ब्लॉक करना था। उसे पूरा किया। इसके बाद कंपनी रूट में डिप्लॉय हुई, क्योंकि दुश्मन के रास्ते में जाने पर रूट सिक्योर करना पड़ता है।
शहादत के बाद भी ट्रिगर पर जमी रहीं अंगुलियां हमें पता था कि ऊपर चार-पांच आतंकी होंगे, उन्हें ढेर करना है, मगर वहां पाक सेना के बंकर थे। जब ऑफिसर व सैनिक सहित 10 लोग पोस्ट के पास पहुंचे तो पाक सेना ने भयंकर फायर खोल दिया। कंपनी कमांडर नीचे गिर गये पहाड़ से, सेकंड कमांडर भी नीचे गिरे। दो-तीन दिन तक फायर के नीचे कंपनी दबी रही। हमारा एक सिख जवान पैरा टूपर गोपाल सिंह था पंजाब का, जब ये सब हो रहा था था तो उससे रहा नहीं गया। उसने खड़े होकर फायर चार्ज कर दिया पोस्ट पर, मैगजीन खाली कर दी। हमने उनका पार्थिक शरीर रिकवर किया तो उनकी अंगुलियां ट्रिगर पर जमी थीं। उस तोतोलिंग पोस्ट को कैप्चर कर उसका नाम गोपाल टॉप प्वाइंट 4700 रखा।
जेनेवा कन्वेंशन का पाक ने किया उल्लंघन
पाक सेना ने प्लास्टिक माइंस फैलाई थी। यह जेनेवा कन्वेंशन के खिलाफ है। इसके मुताबिक माइंस में लोहे की पत्तियां डालनी होती हैं ताकि क्लीयरिंग में यंत्र पकड़ सके। दो अफसरों का पैर उड़ गया। उन्हें मुश्किल से रेस्क्यू किया गया। उसके बाद 26 जुलाई को सीज फायर हुआ तो काफी खुशियां मनाई। यह जिंदा रहने की खुशी थी, युद्ध जीतने की खुशी थी।
विंटर वैकेटेड पोस्ट को पाक सेना ने कर लिया था आक्यूपाई
पाक व हमारी कुछ पोस्ट विंटर वैकेटेड थीं, क्योंकि वहां पहुंचना काफी मुश्किल होता था। शिमला समझौते के तहत विंटर में पोस्ट आक्यूपाई नहीं करना था। हम वापस आ गए मगर पाक सैनिक नहीं गए। वॉर सियाचीन की हार का बदला लेने मुशर्रफ के दिमाग की उपज था।