Singrauli Rider Umling La Pass : सिंगरौली के दो युवा 1800 KM से अधिक दूरी बाइक से तय कर पहुंचे दुनिया की सबसे ऊंची मोटरेबल पास रोड - Nai Samachar

Singrauli Rider Umling La Pass : सिंगरौली के दो युवा 1800 KM से अधिक दूरी बाइक से तय कर पहुंचे दुनिया की सबसे ऊंची मोटरेबल पास रोड

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Singrauli Rider Umling La Pass

Singrauli Rider Umling La Pass : : लेह-लद्दाख में चाइना बार्डर के पास स्थित उमलिंग ला पास, दुनिया की सबसे ऊंची मोटरेबल पास रोड है। ये जगह समुद्र तल से 19 हजार 300 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां अन्य जगहों के मुकाबले मौसम का मिजाज भी काफी अलग ही रहता है, इसलिए बाहर से यहां जाने वालों के लिए हालात ज्यादा अनुकूल नहीं रहते, लेकिन एडवेंचर के दीवानों के लिए ऐसी तमाम विपरीत परिस्थितियां कोई मायने नहीं रखतीं। तभी तो एडवेंचर के दीवाने हों या बाइक राइडर्स, दुनिया की सबसे ऊंची मोटरेबल पास रोड उमलिंग ला पास तक जाने की ख्वाहिश रखते हैं। एडवेंचर के ऐसे ही दो दीवाने रवीन्द्रनाथ टैगोर और लोकेश मेहर सिंगरौली परिक्षेत्र में भी हैं, जो पिछले दिनों अपनी-अपनी बाइक रॉयल इनफील्ड हिमालयन से 1800 किमी से अधिक दूरी तय कर लेह लद्दाख में उमलिंग ला पास पहुंच गए।

रास्ते में रुक कर कल्चर व नजारे देखे

इतने लंबे सफर को बाइक से पूरा करने का कारण इन्हें बाइक राइडिंग पसंद होना है। इसके साथ ही बाइक से सफर करते हुये रास्तेभर पड़ने वाली जगहों में जहां रूके, वहां के कल्चर, प्राकृतिक नजारों का लुत्फ लेना भी था। पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता और सेफ्टी का संदेश सिंगरौली से दुनिया की सबसे ऊंची चोटी तक पहुंचाना भी एक कारण था। यह विचार था कि दैनिक भास्कर के माध्यम से युवाओं को संदेश देना भी है।

सिंगरौली से शुरुआत व बनारस में सफर समापन में लगे ग्यारह दिन

ये बताते हैं कि 25 जून को शुरूआत सिंगरौली से करके मनाली तक पहुंचने में करीब 1500 किमी. का सफर तय किया है। इसके बाद करीब 1000 किमी. की दूरी मनाली से लेह-लद्दाख तक पहुंचने व वहां घूमने में तय किया। इसके बाद वहां से उसी रूट से वापसी कर 5 जुलाई को बनारस में आकर यात्रा का समापन किया।

सिंगरौली से लेह लद्दाख तक का ये रहा रूट

दोनो युवा बाइक राइडर ने दुधिचुआ से 25 जून को अपरान्ह करीब 3 बजे बाइक राइडिंग की शुरूआत की थी। ये दुधिचुआ से चलकर मिर्जापुर से इलाहाबाद, कानपुर, इटावा होते हुये दिल्ली गए। फिर वहां से चंडीगढ़ से सीधे मनाली और आगे लेह लद्दाख पहुंचे।

बाइक राइडिंग को लेकर क्या-क्या की तैयारी?

रवीन्द्र बताते हैं कि उन दोनों के उनके ग्रुप में अन्य कुछ लोग भी शामिल हैं और उन सभी को बाइक राइडिंग का काफी शौक है। वह बताते हैं कि लेह, लद्दाख से पहले वह हिमाचल प्रदेश में स्पीति घाटी गए थे। इस सफर में करीब 4100 किमी. की दूरी तय की थी और 12 दिन का समय लगा था। । इसके अलावा आसपास कह जगहों में छग के रकसगंडा, मेनपाट, रमदहा, बनारस सहित अन्य प्राकृतिक स्थलों पर जाते रहते हैं.

दोनों राइडर हैं NCL कर्मी

बता दें कि ये दोनों युवा बाइक राइडर कोल इंडिया की होल्डिंग कंपनी एनसीएल में कार्यरत हैं। इनमें रवीन्द्र दुधिचुआ में माइनिंग विभाग में ओवरमैन के पद पर कार्यरत हैं। जबकि लोकेश एक्सिवेशन विभाग में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं। ऐसे में इन दोनों ने जिस ध्येय के साथ दुनिया की सबसे ऊंची मोटरेबल पास रोड तक जाने का कारनामा किया है, उससे न सिर्फ सिंगरौली परिक्षेत्र बल्कि एनसीएल का भी नाम रोशन हुआ है।

पंचर बनाने से लेकर सीखे कई कार्य

लोकेश बताते हैं कि वह भी बाइक राइडिंग पहले से करते आ रहे हैं, लेकिन दुनिया की सबसे ऊंची मोटरेबल पास रोड उमलिंग ला पास तक बाइक राइडिंग कर पहुंचने का सपना काफी पहले से था और अब इसे कुछ दिन पहले पूरा किये हैं, इसलिए इस खुशी को शब्दों में बयां नहीं कर सकते। इसके लिए करीब दो माह से प्लानिंग कर रहे थे। बाइक का पंचर बनाने से लेकर अन्य कई प्रकार के कार्य भी सीखे, जिससे रास्ते में होने वाली दिक्कतों से खुद साल्व कर सकें।

राइडिंग दौरान क्या-क्या साथ ले गये?

लेह लद्दाख के सफर के लिए हेलमेट, वाटर प्रूफ राइडिंग बूट्स, ग्लब्स, जैकेट, राइडिंग पैंट, बाइक की ट्यूब, पंचर बनाने का सामान, बाइक की क्लच केबल, ऑयल, चेन मास्टर लिंक, पहनने के लिए कुछ हत्के कपड़े, हाइड्रेशन बैग, ओआरएस, खाने-पीने की अन्य कुछ सामग्रियां आदि एक बैग में साथ ले गये थे।

कुछ अच्छे संदेश के साथ बाइक राइडिंग की थी इच्छा

रवीन्द्र बताते हैं कि बाइक राइडिंग का शौक उन्हें पहले से था, लेकिन जब एनसीएल में ज्वाइन किया तो यहां भी फ्रेंड सर्किल में भी कुछ सीनियर्स बाइक राइडिंग करते थे और उनके द्वारा राइडिंग के बारे में आये दिन बताते थे। जिससे हम लोगों ने भी मन बनाया कि लंबी दूरी की तक राइडिंग करेंगे और ये राइडिंग कुछ अच्छे संदेश के साथ करेंगे। इस सफर के दौरान वह लोकल ढाबा या किसी के घर पर गुजारिश कर रूकते थे, जिससे वह वहां के कल्चर, माहौल व प्राकृतिक नजारों से सीधे रूबरू हो सकें।

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