Singrauli Nagar Nigam : अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिये मजबूर करने 9 अगस्त 1942 को क्रांति का एलान किया गया था। जिसके कारण नौ अगस्त को अगस्त क्रांति दिवस के रूप में मनाया जाता है। गांधी जी ने देश के युवाओं का आह्वान करते हुए नारा दिया था करो या मरो। इसे भारत छोड़ो आंदोलन या क्विट इंडिया मूवमेंट भी कहते हैं। कुछ उसी तरह का माहौल नगर निगम में भी बन रहा है, क्योंकि 6 अगस्त को नगर निगम अध्यक्ष देवेश पांडेय के कार्यकाल के दो वर्ष पूरे हो जायेंगे। नियम है कि दो साल बाद अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है। उनकी कार्यप्रणाली से विपक्षी पार्षद तो नाखुश हैं ही, भाजपा के पार्षद भी खुश नहीं हैं। इसके अलावा दो साल पहले जब चुनाव हुआ था, उस समय भाजपा की पूरी मशीनरी और प्रशासन लग गया था। शासन-प्रशासन के दबाव में कांग्रेस प्रत्याशी रहे शेखर सिंह भी अनमने हो गये थे, लेकिन अब परिस्थितियां वैसी नहीं रहेंगी और सूत्र बता रहे हैं कि अंदर ही अंदर तैयारी चल रही है।
हर्र लगेगी न ही फिटकरी
नगर निगम अध्यक्ष देवेश पांडेय के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आने की आशंका इसलिये प्रबल है, क्योंकि कांग्रेस प्रत्याशी रहे शेखर सिंह ने उस समय करीब 30 पार्षदों को ले-देकर अपने पक्ष में कर लिया था। शासन-प्रशासन ने ऐसी घेराबंदी की कि वह भी पार्षदों से अपने पक्ष में मतदान करने के लिये कह नहीं सके। पार्षदों ने भी दबाव में उन्हें वोट नहीं दिया था, लेकिन अब पार्षद भी उनका वह एहसान उतारना चाहते हैं। पार्षदों को कुछ और भी फायदा हो जायेगा। इसलिये अविश्वास प्रस्ताव की आशंका प्रबल हो जाती है।
आम आदमी पार्टी करेगी विरोध
इस बार यदि शासन-प्रशासन ने पिछली बार की तरह दबाव नहीं बनाया तो महापौर रानी अग्रवाल और उनकी पार्टी के पार्षद भी विपक्ष में खड़े नजर आयेंगे, क्योंकि महापौर और उनके पार्षद भी अध्यक्ष से खुश नही हैं। सत्तापक्ष का होने के कारण महापौर से ज्यादा अध्यक्ष की चलती है। महापौर को पूरे 45 वार्ड की जनता ने चुना है, जबकि अध्यक्ष को पार्षद चुनते हैं लेकिन यहां एकदम उल्टा है। जिसके कारण महापौर और उनके पार्षदों को मौका मिलेगा तो वह बिना समय गंवाये | कुर्सी खींचने का प्रयास करेंगे।
क्या है नाराजगी ?
दरअसल, पार्षद चाहे सत्ता पक्ष के हों या फिर विपक्ष के, उनमें अध्यक्ष के प्रति नाराजगी इसलिये है क्योंकि उन्होंने अपने वार्ड के लिये तो करोड़ों के काम सेंक्शन करवा लिये हैं, जबकि उनका वार्ड एनसीएल के क्षेत्र में आता है और एनसीएल अपने क्षेत्र में सारे काम स्वयं करवाता है। वहीं शहर के वाडों में बहुत जरूरी काम हैं, उन वाडों के पार्षद नगर निगम के चक्कर लगाते रहते हैं, लेकिन उनके काम नहीं होते हैं। इसी नाराजगी को शेखर सिंह भुना सकते हैं।
नगर निगम के अधिकारी भी अध्यक्ष जी से परेशान रहते हैं। वह भी हर बात में दखल नहीं चाहते हैं लेकिन निगम अध्यक्ष चाहते हैं कि हर काम उनसे पूछकर किये जायें। कौन सा टेंडर पास किया जाये, किसको निरस्त कर दिया जाये। किस ठेकेदार का पेमेंट किया जाये और किसका रोक दिया जाये। इन्हीं सब बातों से अधिकारियों में भी नाराजगी है और इस नाराजगी का फायदा निश्चित रूप से शेखर सिंह को मिलेगा।