Singrauli News : बचपन के शौक को ताजिंदगी बरकरार रखना काफी कठिन होता है, लेकिन कई शौक ऐसे होते हैं जो समाज में मान-सम्मान और पद-प्रतिष्ठा सब कुछ दिलाते हैं। यदि वह कला ऐसी हो कि पत्थर को उन्हें जीवंत गढ़ कर करना और लोगों में इस प्रकार के भाव उत्पन्न करना कि लोग उस कला से बनी कृति की पूजा करने लग जाएं तो फिर ऐसा लगता है कि अब सब कुछ पा लिया। । कुछ दिनों पहले अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि में नवनिर्मित मंदिर में स्थापित की गई रामलला की मूर्ति को हर किसी ने सराहा। ऐसी कलाकृतियां लोगों के अंतर्मन में अपनी जगह बना लेती है, बल्कि उन्हें भगवान की तरह अपने अंतःकरण में बसा लेते हैं। डीपीएस निगाही में बतौर टीजीटी आर्ट टीचर पदस्थ मिथलेश राणा आज क्षेत्र के जाने माने शिल्पकार हैं। उन्होंने नगर निगम सिंगरौली, एनसीएल और एनटीपीसी के लिए सैकड़ों मूर्तियां व कलाकृतियां बनामी है।
इन कलाकृतियों को चनाने का सफर उन्होंने झारखंड की लौहनगरी बोकारो स्टील सिटी में प्राथमिक से लेकर 12वीं कक्षा की शिक्षा के दौरान पेंटिंग के साथ शुरू किया था। पेंटिंग के शौक को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने बीएचयू में फाइन आर्ट कोर्स करने के लिए प्रवेश लिया और काला की पंच विधाओं में मूर्तिकला को आगे चढ़ाने के लिए बीएफए और एमएफए करने के दौरान बीएचयू के चांसलर विभूति नारायण सिंह से गोल्ड मेडल प्राप्त किया।
एनसीएल मुख्यालय से हर परियोजना में बनाई कलाकृतियां
शिल्पकार मिवलेश राणा ने एनसीएल मुख्यालय में खलिक प्रतिमा को पत्थर में तराशा, जयंत परिवेजना गेट, जीएम आफिस में एक युद्ध व वृद्धा के साथ बुजुर्गों का सम्मान करने के लिए कलाकृति के जरिए युवा पीढ़ी विवेकानंद की कलाकृति के स निवलेश या को संदेश दिया निगाही स्टेडियम लेखक बखिला में खनिक प्रतिमा के साथ ही डीएची दुरितुआ के समक्ष शिवेकानंद सरस्वती की प्रतिमा का निर्माण कर अपनी कला का प्रदर्शन किया। इसके अलावा समय-समय पर एससीएल में आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों के लिए झांकियों के निर्माण में भी अपनी प्रमुख भूमिका निभाई है। स्वच्छ भारत अभियान के लिए सबसे बड़ी और टुक माउंटेड इरांकी बताने में एनसीएल का सहयोग किया था।
मूर्ति कला में किया विशेष अध्ययन
मूर्तिकला विषय में चयन के लिए 1999 में मास्टर ऑफ फाइन आर्ट करने के वैरान एचआरडी भारत सरकार से दो वर्षों के लिए स्कॉलरशिप हासिल की और मूर्तिकला में विशेष अध्ययन किया। जिसके बाद मिथलेश राष्णा 2001 से सिंगरौली के डीपीएस निगाही में बतौर कला शिक्षक सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। विद्यालय में सेवाएं देते हुए अवकाश व अतिरिक्त समय का सदुपयोग करते हुए उन्होंने विद्यालय के प्राचार्य सुखवंत सिंह थापर के प्रोत्साहन व सहयोग से नगर निगम सिंगरौली, एनसीएल और एनटीपीसी सहित जिला प्रशासन के लिए मूर्तियां, दीवार पेंटिंग, स्वच्छता अभियान, विशेोष आयोजनों में नई नई झांकियों का निर्माण किया।
समाज की विकृतियों को दूर करने का दिया संदेश
जिले के शिल्पकार मिथलेश राणा बताते है कि कई बार गाय पॉलिथीन खाती हुई दिखाई है तो उसकी फोटो खींचता हूँ। जिसके बाद कोई ऐसी कलाकृति बनाने का प्रयास करता है कि गायों को सुरक्षित किया जा सके। इसी तरह कई बार बेस्ट से बेस्ट बनाने के प्रयोग करते हुए हर समय किसी न किसी कल्पना को साकार करने का प्रयास करते हैं। इन सबके लिए सिर्फ मानदेय पर कार्य करके समाज के प्रति अपना योगदान किया।
जिले में दर्ज हुआ था गिनीज बुक ऑफ द वर्ल्ड रिकॉर्ड
निचलेश राणा की करना को जिले के दूसरे कलेक्टर पी. नरहरि ने पहचाना वा और सिंगरौली को जिन वजहों से जाना जाता है, उसकी बही कारलाकृतिया बनाकर शुक्ला मेड, कांत मोड़ में स्थापित करने के लिए कहा। जिसके ब बद एक शिल्पी की तरह उन्होंने शुक्ला मेड में जमीन के अंदर से कोयला निकालकर विद्युत उत्पादन करने के योगदान, कांटा मेड़ में विद्युत वारा प्रवाहित करते हुए एक मजबूत हाथ की कलाकृति बनाकर बाहर से आने वाले लोगों रहो जिले की पहचान बतायी। जिसके बाद नगर निगम से कलेक्ट्रेट के बीच वॉल पेंटिंग के जरिए स्वच्छत अवार, मिति चित्रों की डिजाइन बनायी। जिला कलेक्टर एम. सेलवे द्वारा झिजुत्यह परियोजना में आयोजित बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ अभियान में बताई गई रंगेली की निखनेश राणा ने बक्या, जिससे शिल्लीज बुक ऑफ व वार्ड रिकॉर्ड में जिले का नाम दर्ज हुआ।
मिट्टी ही नहीं पत्थर स्क्रैप, लकड़ी पर भी शिल्पकारी का गुण
शिल्पकारी में सिर्फ पत्थर को तराशना ही शामिल नहीं है। मिथलेश राणा का कहना है कि वे पत्थर, लकड़ी, फाइबर और स्क्रैप से भी कलाकृतियों का निर्माण करते हैं। कोई भी ड्राइंग व डिजाइन के जरिए किसी फैक्ट्री, कोयला खदान, सीएचपी, पावर हाउस या किसी अन्य प्रकार की कलाकृतियों को आफिस की दीवारों व बड़े हॉल में सजाने के लिए शिल्पकारी करते हैं। कई बार अपने ही मन से सोचकर थीम के अनुसार कलाकृति बनाते हैं। लोगों को पसंद आए इसलिए उस स्थान के अनुसार ही कला का चुनाव करते हैं।