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Singrauli News : फूलों की खेती से सिंगरौली के किसान हो रहे हैं मालामाल,माला बनाने के हुनर से लक्ष्मी जी हुईं नारायण पर मेहरबान

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Singrauli News : सरकार किसानों की आय दोगु‌ना करने के लिए तरह-तरह के नुस्खे बताती है और तमाम योजनाओं के जरिए किसानों की मदद करने का प्रयास भी करती है। स्कीमों पर लाखों रूपये खर्च करके किसानों को समृद्ध बनाने के प्रयासों के बीच सिद्धीकलां गांव के रहने वाले एक जागरूक किसान लक्ष्मी नारायण अपनी आय कई गुना बढ़ा चुके हैं। किसान लक्ष्मी नारायण ने तकरीबन एक दशक पहले खेती शुरू की थी। लगभग 4 साल तक परंपरागत खेती की। मजा नहीं आया तो 2018 में कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक व केन्द्र प्रमुख डॉ. जय सिंह के संपर्क किया। उच्द्यानिकी विभाग के शैलेन्द्र शैलेन्द्र सिंह के संपर्क में आये। यहीं से उन्होंने परंपरागत खेती से कुछ अलग किया। उन्होंने गेंदा के फूलों की खेती से शुरूआत की, फायदा हुआ तो दो साल बाद सब्जियां लगानी शुरू कर दीं। आज उनकी गिनती क्षेत्र के प्रगतिशील और समृद्ध किसान के रूप में होती है।

पहली बार में 50 किलो फूल बाजार लाए

लक्ष्मी नारायण बताते हैं कि वे पहली बार में ही 50 किग्रा गेंदा के फूल बाजार लेकर आए थे। जिसके 40 रूपये प्रति किग्रा के हिसाब से 2000 रूपये की रकम हाथ आयी। इसमें उन्होंने बीज के नाम पर 1000 और सिंचाई के साथ जमकर मेहनत की थी। उन्हें उम्मीद थी कि वे उनके खेतों में लहलहाते गेंदा के फूल नया गुल खिलाएंगे। दूसरी बार फिर 50 किलो, तीसरी बार, चौथी बार और फिर सहालग में फूल 100 रूपये किया तक पहुंच गया। यह मेहनत का नतीजा था कि दिन प्रतिदिन फूलों की खेती ने उन्हें जो दिया, वह दोगुना नहीं, कई गुना अधिक था।

अब तो घर से ही माला बनाकर लाते हैं बाजार

एक दौर ऐसा भी आया था कि कोविड-19 में फूलों की खेती तो हुई लेकिन बिक्री नहीं हुई। क्योंकि मंदिर शादी-विवाह लगभग सब बंद थे, लेकिन उस समय सब्जी की जो मांग हुई और फूलों के ठीक में बोयी गयी बगल सब्जियों से ही काम चला। अब उनकी धर्मपत्नी कौशल्या देवी और बेटा भी मिल-जुलकर माला गूंथ देते हैं। जिन फूलों को 40 से 50 रूपये किलो में बेचना पड़ता था। अब माला के रूप में 200 ग्राम का एक माला के ही 30 से 40 रूपये में थोक में बिक जाती हैं। इससे उनके ग्राहक भी खुश है और लक्ष्मीनारायण पर भी लक्ष्मी जी मेहरबान हैं।

पर्यावरण संरक्षण के लिए लगाएं सागौन

लक्ष्मी नारायण ने बताया कि कई वर्षों पूर्व पतंजलि की दुकान खोली थी, उसे बंद कर दी। गायत्री साधक होने के नाते पर्यावरण संरक्षण करने के लिए घर के आसपास कई एकड़ में सागौन के पौधे लगा रखे हैं, जो अब पेड़ बन गये हैं। वे कहते हैं कि धरती माता का श्रृंगार करते-करते परिवार की जरूरतें भी परी होती जा रही हैं। हम किसान हैं, अन्न उपजाने से लेकर फूलों और पेड़-पौधे लगाना भी हमारा धर्म है। अपने जीवन के आखिरी समय जितनी लकडी अंतिम संस्कार के लिए चाहिए उतनी तो तैयार करके जाइये, इसलिए हम सब पौधे जरूर लगाएं और
उनका संरक्षण करें।

कीट-पतंगों पर हुआ नियंत्रण

लक्ष्मी नारायण के लिये यह भी काफी आश्चर्यजनक था कि गेंदे के फूल वाले खेतों के आसपास लगाई गई सब्जियों, खासतौर पर टमाटर की मल्चिंग विधियों के पौधों में आए फूलों में इजाफा हुआ। उनके लगने वाले कीट-पतंगों में कमी आयी। उद्यानिकी विभाग से उन्हें पता चला कि गेंदा के फूलों की सुगंध से सब्जियों व फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट पतंगों की रोकथाम होती है। सब्जियों में अधिक कीड़े लगते थे, वह भी कम हो गये। जिससे उन फसलों में भी काफी फायदा हुआ।

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