Singrauli Goli Kand News : आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र चितरंगी के दुरदुरा गांव में आज से पहले कभी भी 40-50 लाख की महंगी-महंगी गाड़ियां नहीं पहुंची होंगी, क्योंकि दुर्गम पहाड़ी के बीच में बसे खूबसूरत गांव में आने-जाने के लिए एक सिंगल सड़क है। सड़क इतनी संकरी है कि अगर एक चारपहिया वाहन चल रहा हो तो दूसरा वाहन बगल से नहीं निकल सकता है। ऐसे गांव में पिछले चार-पांच दिनों से चमचमाती गाड़ियां प्रतिदिन पहुंच रही हैं। महंगी चमचमाती गाड़ियों को देख गांव वाले भी दंग हैं। ये सभी गाड़ियां गोलीकांड का शिकार हुए दलित युवक लाले बंसल के घर पर आकर रुक जाती हैं। गाड़ियों में सवार होकर आने वाले लोग पीड़ित परिवार से मेल-मुलाकात कर सांत्वना देते हैं और चले जाते हैं। पीड़ित परिवार के दिन का समय तो किसी तरह से कट जाता है लेकिन जैसे ही रात होती है ये दहशत में आ जाते हैं। चार कमरे के बने कच्चे मकान में परिवार के सभी सदस्य दुबक जाते हैं। घर में बिजली नहीं होने से अंधेरे में ही परिवार वालों को रात गुजारनी पड़ती है।
ढाई साल का बच्चा हुआ अनाथ
भाजयुमो नेता अभिषेक पांडेय की गोली का शिकार हुए लाले बंसल का एक ढाई साल का अबोध बालक है। लाले की पत्नी कुछ समय पहले उसे छोड़कर कहीं और चली गई। पत्नी के जाने के बाद लाले ही बच्चे की देखभाल करता था। पिता की गोली मारकर हत्या किए जाने से अबोध बालक अनाथ हो गया है। उस अबोध को पता ही नहीं कि कल तक जो पिता उसको गोद में खिलाता था, वह अब इस दुनिया में नहीं है। लाले की मौत के बाद उसका सरपंच भाई बाबूलाल व उसकी पत्नी ढाई साल के बच्चे की देखभाल कर रहे हैं। जंगलों के बीच में बने पीड़ित परिवार के घर तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क तक नहीं बनी है।
आरोपी का गिराया जाए घर
पीड़ित परिवार से दुख प्रकट करने के लिए भाजपा और कांग्रेस सहित अन्य दलों के जनप्रतिनिधि हर दिन पहुंच रहे हैं, लेकिन पीड़ित परिवार किस पीड़ा से गुजर रहा है, उस तरफ किसी का भी ध्यान नहीं जा रहा है। मृतक लाले के बड़े भाई बाबूलाल बंसल जो कि सरपंच हैं, उनका कहना है कि गोली मारकर भाई की हत्या करने वाले आरोपी अभिषेक पांडेय के घर पर भी जेसीबी चलाई जाए। पीड़ित परिवार पुलिस द्वारा अब तक की गई कार्रवाई से भी संतुष्ट नहीं है। उनका कहना है कि पोस्टमार्टम के समय भी उन लोगों को साथ में नहीं रखा गया और मनमाने तरीके से पोस्टमार्टम कराया गया है।
गांव में बैगा, गोंड व बंसल की है बसाहट
दुरदुरा गांव बीच जंगल व पहाड़ी पर बसा है। गांव में दूर-दूर मकान बने हुए हैं। गांव में पानी के लिए हैंडपंप और कुआं का सहारा है। इस गांव में स्कूल नहीं है, दूसरे गांव में बच्चे पढ़ाई करने के लिए जाते हैं। गांव तक आने-जाने के लिए जो सड़क बनी हुई है, वह पहाड़ी के किनारे किनारे से गुजरती है, जिस पर सिंगल वाहन ही आ-जा सकता है। पूरा गांव वनग्राम है। तबीयत खराब होने पर इलाज के लिए 25 से 30 किमी दूर चितरंगी आना पड़ता है।
कहने को सरपंच लेकिन कच्चे मकान में लाइट तक नहीं
लाले बंसल का बड़ा भाई दुरदुरा गांव का सरपंच है, लेकिन आज भी पूरा परिवार चार कमरे के कच्चे मकान में रहता है। उसके मकान में बिजली कनेक्शन तक नहीं है या यह कहें कि दुरदुरा गांव में बिजली पहुंची ही नहीं है। सरपंच और उसके दो अन्य भाई संतोष व बाबा साथ रहते हैं। मेहनत-मजदूरी कर अपना व अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं। परिवार की स्थित देखकर अंदाजा लगा सकते हैं कि सरपंच, अन्य सरपंचों की तरह नहीं है। इसी जिले में कई ऐसे सरपंच हैं जो निर्वाचित होने के चार-पांच महीने बाद ही सरपंच का बोर्ड लगी लग्जरी कार में चलने लगते हैं, लेकिन बाबूलाल के भाई आज भी मेहनत-मजदूरी करते हैं।