Chitrangi Micro Irrigation Project : प्रदेश शासन चितरंगी माइक्रो सिंचाई परियोजना को मंजूरी देते हुए जल संसाधन विभाग के वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट में 1198.43 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। अब परियोजना को प्रशासकीय स्वीकृति देने की तैयारी है। बताया जा रहा है कि एकाध माह में इसका टेंडर भी लग जाएगा।
परियोजना पूरी होने के बाद चितरंगी तहसील के 138 व देवसर के 4 गांवों की 32125 हेक्टेयर कृषि क्षेत्र तक सिंचाई का पानी पहुंचेगा। वहीं गोड़ बांध मध्यम सिंचाई परियोजना व रिहंद माइक्रो सिंचाई प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद तीनों परियोजनाओं से जिले में खेती के 1 लाख 11 हजार हेक्टेयर यानी कुल कृषि क्षेत्रफल का 80 प्रतिशत रकबे तक सिंचाई की सुविधा हो जाएगी। સુlo जिससे किसान तीनों सीजन में धान सहित विभिन्न फसलें पैदा कर सकेंगे। अभी चितरंगी में वर्षा आधारित खेती होती है।
अंततः सफल हुई विभाग की कवायद
सीधी जिले के साथ ही सिंगरौली के जल संसाधन विभाग का प्रभार पाने के बाद कार्यपालन अभियंता संकट मोचन तिवारी ने इस परियोजना पर काम शुरू किया था। सहकर्मी अभियंताओं के साथ मिलकर उन्होंने इसका ड्राइंग डिजाइन तैयार कर स्वीकृति के लिए बोधि भेजा था। वहां से मंजूरी मिलने के बाद इसे भोपाल में इसे साधिकार समिति में प्रस्तुत किया गया। जहां इसे बजट आवंटन हुआ।
शिव-राम के प्रयास से जिला होगा सिंचित
रिहंद माइक्रो से 38 हजार हेक्टेयर व गोड़ से सरई व देवसर क्षेत्र में 34 हजार हेक्टेयर से ज्यादा कृषि क्षेत्र सिंचित होगा। दरअसल, तीनों प्रोजेक्ट की घोषणा तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने की थी। उनकी योजना सिंगरौली के शत प्रतिशत खेतों तक सिंचाई की सुविधा से लैस करने की थी। रिहंद के लिए तत्कालीन विधायक रामलल्लू वैश्य ने भी अपने स्तर से काफी प्रयास किया था। गोड़ और चितरंगी माइक्रो सिंचाई परियोजना के लिए विभाग ने प्रयास किया।
केवल पानी उठाने में पड़ेगी बिजली की जरूरत
इस परियोजना में बिजली की खपत केवल रिहंद डैम से पानी उठाने में ही होगी। पहाड़ी के लेवल पर पानी लाने के बाद उसे पाइपलाइन में प्रेशर के साथ प्रवाहित किया जाएगा। इसे प्रेशराइज्ड इरिगेशन कहा जाता है। विभागीय अधिकारी बताते हैं कि वैढ़न की रिहंद माइक्रो और सरई-देवसर क्षेत्र की गोंड बांध मध्यम सिंचाई परियोजना भी इसी पर आधारित है। रिहंद माइक्रो का काम चल रहा है वहीं गोंड़ बांध का काम शुरू नहीं हो पाया है। ग्रामीणों के विरोध के कारण इस बांध को दो जगह मध्यम ऊंचाई का बनाने की तैयारी है, ताकि कम से कम डूब क्षेत्र हो।
पानी का बिल्कुल भी नहीं होगा अपव्यय
स्काडा सिस्टम आधारित परियोजना में पानी का अपव्यय नहीं होगा। रिहंद डैम से पानी 10-12 किमी मुख्य पाइप लाइन के माध्यम से चिन्हित पहाड़ी पर पहुंचेगा। वहां से इसे स्काडा सिस्टम आधारित डिस्ट्रिव्यूशन लाइन से जोड़ते हुए प्रेशराइज्ड तरीके से 138 गांवों तक ले जाना है। जहां स्प्रिंकलर से खेतों की सिंचाई होगी। स्काडा सिस्टम आधारित होने के कारण इसमें पानी का अपव्यय भी नहीं होगा। सिंचाई के लिए किसान कंट्रोल रूम में मैसेज करेंगे। तभी आपूर्ति की जाएगी।
क्या है स्काडा सिस्टम, कैसे करेगा काम ?
स्वचालित सिंचाई प्रणाली स्काडा में तकनीक का कई तरह से उपयोग होता है। यह मिट्टी में पानी के स्तर को समझने के साथ सिंचाई को ट्रिगर कर सकता है। आपूर्ति सिस्टम को बंद करने का संदेश भेज सकता है। सेंसर आधारित सिस्टम यह भी तय करता है कि कब पानी देना है व कितनी बार पानी का उपयोग करना है। इसमें कम्प्यूटर आधारित एक प्रणाली सेंसर की निगरानी के लिए साफ्टवेयर का उपयोग कर हवा की गति, तापमान, मिट्टी की स्थिति के आधार पर सिंचाई कार्य को स्वचालित करती है। यह धन व समय की बचत में कारगर है। अलार्म व आपातकालीन सूचनाएं भेजकर समस्या हल करने में मदद करता है।
एक नजर में परियोजना
- भू-अर्जन महंगा इसलिए पाइप लाइन आधारित सिंचाई की योजना।
- जमीन के दो मीटर नीचे से गुजरेगी मेन और वितरण पाइपलाइन
- पाइप लाइन की जमीन के मूल्य का 1/6 प्रभावित को मुआवजा।
- सुपरवाइजरी कंट्रोल एंड डाटा एक्विजिशन (स्काडा) से निगरानी
- रिहंद डैम से जैकवेल के माध्यम से उठाया जाएगा सिंचाई का पानी।
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